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प्रेगनेंसी के पैंतालीसवें सप्ताह, हफ्ते के लक्षण, डाइट, शरीर में बदलाव और शिशु का विकास | 35th, Thirty-Fifth, Thirty-Five Week Pregnancy

मैं डॉक्टर सुप्रिया पुराणी, टेस्ट्री बेवी कंसल्टेंट, और प्रैक्टिसिंग ऑप्थल्मोलॉजिस्ट और गाइनेकोलॉजिस्ट हूँ और लगभग 20 वर्षों से काम कर रही हूँ। हम अभी 35वे हफ्ते में हैं। वजन में बढ़त के कारण हमें कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे पेट दर्द, डायरिया, और सांस लेने में कठिनाइयाँ। लेकिन चिंता न करें, ये समस्याएँ अकेले दिनों के लिए ही हो सकती हैं, और हमें याद रखना चाहिए कि सब्र का फल मीठा होता है। तो चलिए हम जानें कि इस अवधि में हमारे शरीर में क्या परिवर्तन हो रहे हैं।

हमारे बेबी के शरीर में क्या परिवर्तन हो रहे हैं? इस अवधि में हमें अपने खयालों का खास ध्यान रखना चाहिए? और हमारे होने वाले बच्चे के लिए हमें कैसी सलाह दी जा सकती है? तो चलिए हम जानें कि इस दौरान हमारे शरीर में क्या परिवर्तन हो रहे हैं। हमारी गर्भाशय नाभि से 6 इंच ऊपर मापी जा सकती है और गर्भाशय रीप केज में वृद्धि हो रही है, इसलिए हमें दोनों फैबर पर प्रेशर आएगा और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। आपका वजन अब तक 8-10 किलो तक बढ़ गया है, लेकिन जिनका वजन अधिक नहीं बढ़ा है, उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। सोनोग्राफी में हम बच्चे के विकास को ट्रैक कर सकते हैं, लेकिन जब वजन बहुत तेजी से बढ़ता है, तो कभी-कभी गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज की समस्या हो सकती है और उनके ब्लड प्रेशर में बढ़ोतरी हो सकती है। इसलिए हमें यह सावधानी बरतनी चाहिए।

अब आपकी गर्भावस्था के 35वें हफ्ते से लेकर 37वें हफ्ते तक, बेबी के सिर का पेल्विक वेगिनल डिलीवरी के लिए तैयार होने लगता है, जिससे आपका ब्लड प्रेशर कम हो सकता है और आपके सांस लेने में सुधार हो सकता है। जब बेबी का सिर नीचे की ओर जाता है और पेल्विक केविटी में आता है, तो यह आपके ब्लैडर पर दबाव डाल सकता है, पिशाब की बगीचे पर दबाव डाल सकता है और अधिक पिशाब करने की इच

्छा उत्पन्न कर सकता है। इसलिए आइए हम जानें कि 35वे हफ्ते से 37वें हफ्ते में हमारे शिशु में क्या परिवर्तन हो रहे हैं।

हमारे शिशु की लंबाई अधिक नहीं बढ़ती, यह लगभग 17 से 18 इंच तक हो सकती है, और उनका वजन लगभग 2.5 किलोग्राम तक हो सकता है। अब बेबी की किडनी ठीक से काम करना शुरू कर सकती है, उनकी लीवर भी जिसमें वेस्ट प्रोडक्ट्स तैयार होते हैं, वो आपकी बाजू से बाहर आ सकती है, और उनका पाचन प्रणाली भी ठीक से काम कर सकती है। अब उनके आथ में मेकोनियम (यानी आथ के डेटा सेल्स जो विचारिक शरीर में होते हैं) जमा होना शुरू हो सकता है, जिसका रंग काला होता है।

यह जमा हुआ मेकोनियम बेबी के पहले पानी के रूप में बाहर आ सकता है, तो हमें इस समय खास ध्यान देना चाहिए। अब तक बेबी की किक्स यानी इनर मोवमेंट्स अच्छी तरह से होती हैं। जैसा कि मैंने पहले बताया है, 37वे हफ्ते के बाद बेबी की किक्स में थोड़ी कमी हो सकती है और वे किक्स अन्य तरह की हरकतों में बदल सकती हैं। यह जरूरी है कि हम याद रखें कि बेबी कई तरह की हरकतें कर सकता है, जैसे लात मारना, चुम्बकी लात, और कभी-कभी पूरी तरह से घुम जाना, जिसे कंप्लीट रोल कहा जाता है। इसलिए, हमें इस तरह की हरकतों को संज्ञान में रखना चाहिए, और हर 2 घंटे में 10 हरकतों का गणना करना चाहिए, जो कि आपको करना होगा। यदि बेबी 2 घंटों में सोता है, तो भी आपको चिंता नहीं करनी चाहिए। आपको खाना खाना चाहिए, और खाने के बाद 2 घंटे में बेबी की 10 हरकतों का गणना करना चाहिए।

इस अवधि में, आपके गाइनेकोलॉजिस्ट आपको 35वे से 37वे हफ्ते के बीच में ग्रोवथ टेस्ट करवाने की सलाह देंगे।

तो आइए हम जानते हैं कि यह टेस्ट क्या होता है? Group B streptococcus हमारे शरीर के आंत में रहते हैं. ये जीवाणु रहते हैं, बैक्टीरिया रहते हैं, हमारे आंत में, कभी-कभी वजाइना में भी रहते हैं. ये जीवाणु होते हैं, और वजाइना में रहने से ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन नॉर्मल डिलीवरी के दौरान कभी-कभी ये जीवाणु आने वाले शिशु को संक्रमित कर सकते हैं और इंफेक्शन पैदा कर सकते हैं.

यदि ये नए जन्मे शिशुओं में इंफेक्शन करते हैं, तो उसे मेनिंजिटिस कहा जाता है, कभी-कभी प्न्यूमोनिया भी हो सकता है, कभी-कभी ब्लड में फैल जाता है, और इसे सेप्टिसेमिया कहा जाता है, जो खतरनाक बीमारियों का सामना करने की स्थिति हो सकती है.

कभी-कभी डॉक्टर यह टेस्ट नहीं सुझाएँगे, लेकिन जब एक प्रेग्नेंट महिला अस्पताल में डिलीवरी के लिए आईती है, तो जांच के लिए एक स्वाब लिया जाता है जिससे यह पता चलता है कि क्या योनि मार्ग में बीटा स्ट्रेप्टोकोकस संक्रमित है या नहीं? और जब यह संक्रमित होता है, तो डिलीवरी के दौरान मां को पेनिसिलिन जैसे एंटीबायोटिक्स दिया जाता है, जिससे बच्चे को इस इंफेक्शन का संक्रमण होने की संभावना कम हो जाती है.

आमतौर पर, डॉक्टर इस टेस्ट को सुझाते नहीं हैं, लेकिन डिलीवरी के दौरान पेशेंट को अस्पताल में लेते समय, हम नॉर्मल डिलीवरी का प्रयास करते हैं और हर माता को सालीन के साथ इस पेनिसिलिन इंजेक्शन को दिया जाता है।

कभी-कभी मां इचिंग की शिकायत करती हैं, जिसे वजिनल इचिंग कहा जाता है.

वजिनल इचिंग, व्हाइट डिस्चार्ज, और कभी-कभी फंगल इंफेक्शन का भी एक संकेत हो सकता है.

इसलिए, यदि आपको इस तरह की शिकायत होती है, तो आपको अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए. डॉक्टर आपको एंटी फंगल वजिनल पेसरीज या क्रीम के द्वारा इलाज कर सकते हैं. और यह वजिनल इचिंग, व्हाइट डिस्चार्ज, और कभी-कभी फंगल इंफेक्शन की एक संकेत भी हो सकती है।

इसलिए, यदि ऐसी कोई शिकायत हो, तो आपको अपने डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। डॉक्टर आपको एंटी फंगल वजिनल पेसरीज या क्रीम के द्वारा इलाज कर सकते हैं।

इसके अलावा, आपको देखना चाहिए कि जब आपका बच्चा पैदा होता है, तो मां-बच्चे के बीच की जड़ी बची होती है, जिसे कॉर्ड कहा जाता है। इसका मतलब होता है कि अब आपकी जिम्मेदारी होती है कि आप बच्चे की जड़ी काटें या नहीं।

आमतौर पर, डॉक्टर आपको इस चीज का फैसला करने के लिए पूर्ण इजाजत देते हैं, और यह मतलब होता है कि अब आपकी जिम्मेदारी हो जाती है कि आप बच्चे की जड़ी काटें या नहीं, लेकिन इसका काम करने से पहले आपको डर का सामना करना पड़ता है।

तो, यदि आपके पास कोई प्रश्न होते हैं, तो कृपया हमसे संपर्क करें और हमारी इस सीरीज “प्रेग्नेंसी वीक बाइ वीक” को जारी रखने के लिए हमारा साथ दें। धन्यवाद!

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